Friday, October 2, 2020

 


कविता-- श्रीमती अलका मधुसूदन पटेल 

मोबाइल  09754010425 अधारताल जबलपुर म. प्र.


हमारी आस्थाएं व जल से खिलवाड़


*माता नर्मदा का आव्हान*-(सभी नदियों - प्रदूषण हेतु)


नहीं चाहती नितकरो मेरे पद पंकजो का तुम अब वंदन।

न मैं चाहूं पूजा भंडारे संध्या सुंदर बड़े दीपों का अर्पण।

पुष्प मालाएं न चढें -चढ़ें धर्म आस्थाओं भावों के सुमन।

सड़ी गली बदबू कचरों से होता है कितना मैला सलिलं।

सोडा-साबुन टूटी-प्रतिमायें घातक-जहरीले रंगों मिश्रण।

यूं बर्बाद किया,अशुद्ध किया तो कैसे हो जल का संचन।

प्रभु महेश की हूँ मैं बेटी ,सदियों से जीवन देते आई हूं।

पालन धर्म करके मैं भी, उनको साथ चलाकर लाई हूं।

ध्यान रहे होऊं न अब प्रदूषित संदेश ये देने मैं आई हूं।

मैली न होऊं, होए न,आशीष-श्रापित ये बताने आई हूं।

गंदे नाले ,शवों-भस्मीयां, बहते सड़ते कचरे की ढेरियां।

दूषित करके  मेरे उज्जवल जल को बना रहे नालियाँ।

माता माना तुमने दायित्व हो पीढ़ी को आगे बढ़ाने का।

नित करो दर्शन-स्नान ,हाँ संकल्प करो साफ रखने का।

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अलका मधुसूदन पटेल



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