Tuesday, June 28, 2016

भारत माता की आरती

भारत माता की आरती सिर पर हिम गिरिवर सोहे ,चरण को रत्नाकर सोहे देवता गोदी में सोए ,रहे आनंद होए न द्वंद ,समर्पित छंद ! बोलो जय बुद्धि प्रदाता की.१. आरती भारत ----- जगत से लगती यह न्यारी ,बानी है इसकी छवि प्यारी के देख दुनिया जले साडी ,देख कर झलक , झुकी है पलक ,बड़ी है ललक ! कृपा बरसे जहाँ दाता की .२. आरती भारत ----- गोद में गंगा जमुना लहरें, के भगवा फहर फहर फहरें . लगे हैं घाव बहुत गहरे ,हुए हैं खंड ,करेंगे अखंड ,देकर दंड ! मौत दु:खदाता विदेशी की.३. आरती भारत ----- पले जहाँ रघुकुल भूषण राम ,बजाये बंशी जहाँ घनश्याम. जहाँ के कण कण तीरथ धाम . पले हर धर्म, साथ शुभ कर्म ,लड़े बेशर्म. गूंजे धुन राम विधाता की.४. आरती भारत ----- बढे हिन्दू का स्वाभिमान ,किया केशव ने जीवनदान . बढ़ाया माधव ने सम्मान , चलेंगे साथ ,हाथ में हाथ ,उठकर माथ ! शपथ गीता गौमाता की .५. आरती भारत ----- संकलित--श्रीमती अलका मधुसूदन पटेल Definition for Zoology Z

छोटे से नेपा की प्यारी कहानी.

अमूल्य यादें आओ सुनाती हूँ तुमको कहानी,छोटे से नेपा की प्यारी कहानी. अद्भुत थे वे पल-छिन-दिन और मीठी न्यारी थी सबकी वो बानी . कुछ स्वर्णिम यादें जिन्हे अपने तरीके से संजोकर अपने नेपानगर वासियों को अर्पित करना चाहती हूँ .जिन सुखद दुर्लभ यादों को स्मरण करके ही आज आँखों में आंसू आ जाएँ ,इसे हम क्या कहें. आज वरिष्ट जनों की श्रेणी में हमने कदम रख लिया है पर फिर भी हमारे बचपन का वो मधुर संसार तो वैसा का वैसा ही लिपिबद्ध होकर श्रंखला के स्वरुप में उमड़-घुमड़ कर समक्ष आते जाता है. आप व हमारे ऐतिहासिक नेपानगर से बाहर निकलकर अधिकांश नेपावासी अपनी अपनी योग्यतानुसार पढ़कर बढ़कर सुदूर स्थापित हो चुके हैं.चाहे स्वदेश हो या परदेश. अपने *ग्रहदेश* का नाम सुनते ही दौड़कर पहुँचने को आतुर हो उठते हैं .वही अपनापन ,प्यार,संस्कार,दुलार,प्रिय व्यवहार,मधुर-शीतल निःस्वार्थ वाणी का अनोखा संसार करतल ध्वनि से स्वागत करता प्रतीत होता है. न तो कोई ए..टी.एम.,न एंड्रॉयड मोबाइल न कोई कैमरा ,न फोटो , न मॉडर्न बाइक ,न स्कूटी ,न आज जैसी कोई आधुनिक सुविधा उपलब्ध ,कार आदि सोची ही नहीं जा सकती. ,साधारण साइकिल भी कम दिखती. पर लगभग हर बच्चा अपने स्कूल का नियमित विद्यार्थी, घर के अभिभावक उनकी शिक्षा के लिए निश्चिन्त व कक्षा में पढ़ाये जानेवाले शिक्षकों की वो अनमोल आत्मीयता. प्रतिदिन का गृहकार्य सदा पूर्ण . कोई पिछड़ न जाये ,कोई कम अंक लाया , तो क्यों? अनुत्तीर्ण हो गए तो शामत ही समझो. यानि पाठशाला कम घर जैसा माहौल ज्यादा. पिकनिक जाना हो ,स्नेह सम्मलेन मनाना हो तो, सामूहिक भोज हो ,खेल कूद की प्रतियोगिता हो या भाषण ,वाद-विवाद सब कुछ स्कूल मे..अपने आत्मीय शिक्षकों के साथ. जहाँ बच्चों के माँ-पिता भाई बहिन भी सब बराबरी से साझा करते. नेपानगर के आस पास की कोई नदी -तालाब -जीर्ण-शीर्ण मंदिर या वहां के सतपुड़ा के जंगलों व छोटे गावों में भी सामूहिक पिकनिक के साथ सबके द्वारा मिलकर बनाया भोजन ,खेलकूद,अंत्याक्षरी ,गाना बजाना, नृत्य नाटक कुछ भी नहीं छूटता. मीलों दूर की नदी या कोई जगह रहे ,सारे स्कूल के विद्यार्थी पैदल गाते बजाते चलते जाते.कोई व्यक्तिगत समस्या हो या शारीरिक कष्ट सब एक दूसरे के लिए नि:स्वार्थ तत्पर.कोई आर्थिक,जातिगत भेदभाव नहीं सबके साथ समान व्यवहार....सब एक सुंदर परिवार,सब आपस में जुड़े ,बड़ों के लिए सम्मान छोटों के लिए स्नेह. काफी ज्यादा विद्यार्थी संख्या होने पर भी लगभग एक दूसरे की जानकारी रहती.कैसा अनोखा परिवार रहा है हमारा ,इसीलिए आज भी अपना अनूठा बचपन नेपानगर में बिताये लोग अपना वही प्रिय संसार-संस्कार व वाणी की सतत मधुरता ढूढ़ते रहते हैं.. नेपानगर की वर्तमान की जागरूक हमारी आज की पीढ़ी ने भी इतनी सुन्दर वेबसाइट की शुरुआत करके अपना इंट्रेस्ट जाहिर कर दिया है. इस सांस्कृतिक कला केंद्र के माध्यम से मुझे लगा ,मैं भी अपनी कुछ स्मृतियाँ शेयर करूँ .आप सब के साथ .निश्चित मानिये उस समय की अनेकों अद्भुत स्मृति संग्रह को पढ़कर सबको बहुत अच्छा लगेगा चाहे एक सुन्दर कहानी पढ़ने जैसी ख़ुशी व उत्सुकता रहे. कुछ क्रम से आप पढ़ेंगे तो ---------- 1-----