gyaana-vishesh
Tuesday, July 28, 2020
तन्मय मीन्स मगन।"
"
तन्मय मीन्स मगन"
तन्मय जोरों से खिलखिलाकर हंसता हंसाता रहता। सहज ही सबका ध्यान अपनी तरफ आकर्षित करता चलता।
“
गुड मॉर्निंग सिस्टर्स
,
हाई शानू दीदी
,
हेलो डॉ मुस्कुराओ अंकल
,
नमस्ते रामू दादा
,
आदाब अशरफ चाचा
,
हूँ
?
कैसी हो माई डिअर बुआजी ” सिर झुकाकर प्यार-दुलार से कहता। जाने कितने नाम वो लगातार लेता जाता व सब उसके अंदाज में ही उसको जवाब देते जाते। सौ बेडेड उस बड़े डे केयर हॉल में उपस्थित लगभग सभी पेशेंट्स व उनके सहायकों को उसका प्यार भरा व्यवहार अंदर तक मन को तराबोर कर देता । सब अपनी चिंता परेशानी भूलकर उसकी मोहब्बत भरी शरारतें व मनभावन बातें देखते सुना करते।
वहां छाया हुआ सारे
वातावरण का
,
थोड़ी देर पहले का उदासीपूर्ण पूरा माहौल बदल जाता
,
जीवंत हो जाता।
हॉल के दोनों हिस्सों में लगे बड़े एल सी डी - टी वी पर
कोई प्रोग्राम चलता तो वहां आते ही हेड ‘नायर सर’ से रिक्वेस्ट करके इशारे में कहता
,
,"
प्लीज अंकल वो रिमोट:-------।"------ "हाँ"------
देखकर सारे लोग आश्चर्यचकित होते
,
बहुत स्ट्रिक्ट माने जाने वाले सर खुद ही बड़े प्रेम से उठकर टी वी का रिमोट उसके हाथ में पकड़ा दिया करते ।
लाड़ से कहते
,
"
तन्नू पर धीरे से "
, -------"
ओ
के
,
डोंट वरी सर्
,
आई विल मैनेज।"
दस साल के बच्चे ने मानो सबको मंत्र मुग्ध कर रखा है। जब भी वो अपने रूम से यहां आता तो पूरा माहौल बदल जाता
,
उसकी किलकारियों गुंजित होती रहतीं। जबकि वो अपनी फोल्डिंग कॉट में ही बैठा रहता। कभी कभार ही भागदौड़ करता
,
परोक्ष में वो किसी का कुछ नहीं
,
फिर भी सबका दुलारा
,
लाडला
,
हर उपस्थित व्यक्ति का रिश्तेदार। जब उसका मन होता तो वो किसी को घोड़ा बना लेता या किसी के कंधे में बैठकर घूमने लगता। कभी एकदम बच्चा बनकर प्यारी सी बातें कर सबको लोट पोट कर देता। पूरे समय मस्ती हंसी मजाक करता।
उस दिन उसने उनकी तरफ देखा
,
मुस्कुराकर हल्के से हाथ हिलाया
,
उन्होंने भी वेव कर दिया।
टी वी पर अब उसका पसंदीदा कोई कार्टून चैनल चलने लगा। तन्मय अब उसी में तन्मय हो गया। उस दिन उनकी
ड्यूटी
ठीक वहीं लगी
,
जहाँ उसकी उपस्थिति। इतना छोटा होकर भी उसके चेहरे पर कोई शिकन तक नहीं दिखती मानो कोई तकलीफ ही नही है। हँसते हुए आता
,
वैसे ही चला जाता ।
उसके साथ उसके माँ पापा भी। हाँ
,
उनके सामने वो नन्हा बालक न बनके
,
कभी एकदम बड़े बूढ़ों की तरह व्यवहार करता। कभी बिलकुल छोटे से शिशु की तरह बन जाता. वे भी उसके सारे नाज नखरे
हंसकर सहते। अब तो उसकी बुआ भी उसको मिल गयी। उसका पसंदीदा गेम्स "चैस" होता
,"
वर्ड्स गेम" या कार्ड्स का "ट्वेंटी नाइन"। उसके सबसे प्रिय चाचू उसके हमउम्र भी नहीं पर स्वभाव में थोड़े ही बड़े लगते उससे। उसकी सबसे अधिक लड़ाई उन्हीं से रहती। उनका मोबाइल
,
उनका कैमरा
,
उनकी रिष्ट वॉच या हो उनका पैन। उनके द्वारा लाये गए चॉकलेट्स
,
कभी कभी तो उनके टी शर्ट्स तक वो पसंद करता व वे
भी उससे बराबरी से लड़ाई करके ही मानते। उनकी लगभग प्रत्येक दिनों की नोंक झोंक सभी को आनंदित करती।
आश्चर्य तब होता जब हर बार उसकी पसंदीदा की उसको वही गिफ्ट उनसे मिलती ।
'
इस्माइली
'-'
तन्मय
'
यहां करीब दो महीनों पूर्व ही पहुंचा होगा । यहां रहना कितना मंहगा हो सकता है
,
ये सोचकर कोई हिम्मत भी नही कर सकता।
पर जाने क्यों उसके सहयोग के लिए कई हाथ उठते गए व उसको अपने पेरेंट्स के साथ रुकना ही पड़ा। उनको जाने नहीं दिया गया।
अचम्भा होता
,
पता ही नहीं चल पाता कि कब
,
कौन
,
कैसे
,
कहाँ से नन्हे से...
तन्मय की सारी जरूरतें पूरी कर रहा है या कर जाता है.
जिस जगह बिना पेमेंट किये
,
बिना रसीद दिखाए
,
प्रॉपर चैनल से ही आगे बढ़ना होता है। कोई भी कार्य हो ही नहीं सकता। वहीं ये अविश्वसनीय कार्य।
उसके पेरेंट्स उसके लिए कितना----कष्ट उठा रहे हैं।
वो बच्चा यहां बच्चा नहीं रहकर पूरा मैच्योर बन जाता। कभी उसमें इतने गाम्भीर्य विचारों का समावेश हो जाता कि सुनने वाले के पास उसके उत्तर ही नहीं होते। हाँ अक्सर वो इतनी समझदारी की बात करता कि विश्वास नहीं होता कि महज दस साल का है ये।
कितने लोगों के सिर के ऊपर से निकल जाती उसकी उलझी या कहें ज्ञान भरी बातें।
उस नन्हे से तन्मय ने सबको तन्मय कर रखा था
,
जिसकी ड्यूटी उस जगह लगती
'
वो
'
या जिसको ट्रीटमेंट हेतु आना है वो उसकी रास्ता देखते।
संजीदा होकर भी मुस्कुराहट से सराबोर रहता
,
कभी शिकन नहीं दिखलाई पड़ती।
कभी लगता उसे कुछ पता नहीं
,
कभी लगता हमसे भी ज्यादा उसको पता है।
कहता “ बुआजी इस यूनिवर्स में सब कुछ फिक्स है
,
सबके काम
,
सबके नाम व सबके विराम।”
"
जो जैसा करता है उसको वैसा प्रतिफल मिलता है । हम जो चाहते हैं
,
नही मिलकर भी
,
कहीं न कहीं से वो किसी स्वरूप में प्राप्य
होता ही है।”
“
ओह ! स्माइली !! तुम कितनी गूढ़ बातें करते हो । तुम्हारे दिमाग में क्या चलते रहता है।“
उसके मुंह पर सदा विराजित मुस्कुराहट ने ही उसका नामकरण स्माइली कर दिया।
वो गोल गोल आंखे घुमाकर कहता
,”
तभी माँ कहतीं हैं कि जब मैं पैदा हुआ तो मेरे मुंह में दांत थे।”
“
अरे बुआ! हम बोलते हैं तो जीभ काम आती है ना कि दांत
,
हा ! हा ! और बग़ैर जीभ के कोई जन्म लेता है क्या
?”
“
हाँ मेरे
'
दद्दा-बड्डे
' ,
तुम सही ही हो।”वे बड़े लाड़ से कहतीं।
बुआजी कभी उसे समझ पातीं
,
कभी नहीं
,
पर बस चाचू के बाद वे ही उसकी बेस्ट फ्रेंड्स हैं .
इन दोनों के पास तन्मय की हर सीक्रेट होती. कितनी बातें
,
कितनी कहानियां
,
परिचितों -अपरिचितों के किस्से लगातार बताते रहता।
बचपन से जब से होश संभाला तब से आजतक की लगभग हर घटना उसको मुंह जबानी स्मरण होती।
साथ ही बताने का विशेष तरीका। हर बार एक नई कहानी
,
नई घटना जो उसके साथ बीती होती
,
एक नए तरीके से बताता।
कहता
, “
बुआजी कैन यू राइट डाउन दिस फ़ॉर मी
,
यू नो
,
कितनी अच्छी यादें हैं ना ये सब बातें।”
कभी उसकी
स्नेहिल बातों
वीडियो तक की रिकॉर्डिंग व् सूंदर विचारो को कलमबद्ध भी.
बुआजी हमेशा हाँ में सिर हिला देतीं। कभी कहता
, "
कैन यू हेल्प मी
इन माई स्टडीज ऑल्सो
,
यु नो अदरवॉइस
'' ------- "
मैं पिछड़ जाऊंगा ना ".
हफ्ते के पांच दिन जब भी उनकी ड्यूटी वहां होती
,
केवल वे
ही नही
,
वहां उपस्थित सभी उसका इंतज़ार करते।
वास्तव में
इस तरह की जंग केवल उन लोगों की
,
खुद की नहीं सबकी
साझा होती जाती है
,
उनको तकलीफ तो सबको परेशानी
,
उनके चहरे पर शिकन आये
तो सब उसे दूर करने का प्रयास करने लगते. यही तो आपस में सबको जोड़कर रखता है.
जिस दिन उससे मुलाकात होती
,
घर जाकर केवल उसका ध्यान ही बना रहता । दिमाग में बस यही आता कितने जीवट वाला है ये नन्हा मुन्ना।
उसकी सकारात्मकता व् समझदारी की बातें दूसरों को भी अनूठा पथ पढ़ा देतीं।
यूँ लगता घनघोर अँधेरे में प्रकाश की नन्ही किरण उदित हो रही है. उसके साथ बिताए हर लम्हे
,
मिनिट में कितनी दार्शनिकता होती कि समझने वाला ही जान पाता। उसकी अनिर्वचनीय
,
मृदुल शांत मुद्रा से उसके गहन विचार बिल्कुल अप्रगट प्रतीत होते
,
अपनी खुद की समझ पर अविश्वास
सा लगता।
सबका समय कितना बेशकीमती होता है पर तन्मय से मिलकर सिर्फ उससे बातें करके टाइम कहाँ बीत जाता
,
पता ही नही चलता। उसकी जिंदादिली
,
उसकी हिम्मत देखकर
,
उसके बुलंद हौसले देखकर अन्य लोग ढीले पड़कर शायद
डगमगा जाते पर उसकी वो अनमोल मुस्कराहट
,
खिला भोला सूंदर चेहरा व प्यारा सा व्यक्तित्व सभी को बौना बना जाते.
कभी प्रतीत होता कि वो अनायास बड़ा हो गया है
,
कभी लगता इससे भोला सा चपल शिशु हो ही नहीं सकता.
हर बार की तरह वो अपनी डेट पर आता व सबको जिला जाता
,
नयी
'
संजीवनी बूटी
'
देकर जाता।
उसके माँ पापा
,
ज्यादातर किसी से कोई बात नहीं कर पाते
,
अक्सर सीरियस ही बने रहते।
उलट वो ही उनकी हौसला अफजाई अपने तरीके से करता रहता। नए नए तरीके अपनाकर हंसने
,
मुस्कुराने की तरकीब
ढूँढता।
"
ओह ! मॉम ! माए !डैड !" उन्हें हंसाने हेतु
मुँह चिढ़ाकर कहता।
फिर पीछे लगकर कहता
,
चलो मिलकर आज कोई गीत गायें
फिर धीरे अपनी
'
धुन
'
गुनगुनाता.
,"
अरे यार ! पर यहाँ जोर से नहीं
गा सकता ------दिक्कत है न।"
उसकी इंटेलिजेंस के सभी कायल रहते
,
सबका दिल जीतकर सबका चहेता तन्मय सबकी
'
जान
'
ही बन बैठा मानो।
धीरे धीरे उस प्यारे से बच्चे की आवाज कहीं खोने सी लगी
,
एनर्जी की कमी होती दिखती। बातें अब भी करता पर रुक रुककर।
हाँ
,
दृढ़ता भरी मुस्कराहट उसी प्रकार की रहती
,
चैतन्यता ज्यादा दिखलाई देती।
उस पर ज्यादा बातें करने व सबके बीच जाने पर एक दीवार सी खींच सी दी गई ।
तब भी उसका चहचहाना कम नहीं हुआ। वहां पहुँचते ही उसके बारे में जानने को लोग और उत्सुक हो उठते।
लगता पूरी कायनात ही नहीं
,
सारे लोग ही मानो उस नन्हे के लिए सहयोगी हो उठे हैं।.
क्या
'
स्टाफ
'
व क्या
'
जाने अनजाने
'
लोग
,
उसके परिजनों के हितैषी
,
सहयोगी होते गए।
वो
देवदूत सा बालक भी मानो अपने इस छोटे से जीवन में आई हर चुनौती को स्वीकार को तैयार।
लोग निरन्तर वहां उपस्थित रहकर भी उसके साथ
,
उसकी विपदा को उसके सामने कभी भी
प्रगट नहीं होने देना है
,
दृढ़ निश्चय करके आते.
अति संवेदनशील होकर भी कोई घबराहट
,
चिंता का नामो निशान नहीं दिखना चाहिए. एक धीरज व सांत्वना जैसा मुखौटा ओढ़े रहना होगा.
जिस मासूम को कभी उदास नहीं पाया
,
शनैः शनैः अब अत्यधिक कष्ट में भी हँसता पाते ।
शायद उसे हमेशा लगा होगा
कि अपनी तकलीफ प्रगट करके कहीं वो अपनों को शारीरिक कष्टों के साथ मानसिक दुःखी भी न कर दे।
उसे तीव्रता से महसूस होता
,
अनचाहा कष्ट तो दे ही रहा है।
ऐसे में तो बड़े से बड़े भी हिल जाते हैं
,
पर वो उम्र से बड़ा बहुत बड़ा हो चुका है.अक्सर लगता
,
काश कि वो बालक ही बना रहता।
तब शायद नार्मल परिस्थितियां बनी रहतीं. उसकी जद्दोजहद से सारे नहीं जूझते रहते. अनमोल शब्द कहता -------
"
समय बढ़ता जाता है
,
वो किसी के लिए नहीं रुकता। अच्छा होना हो या बुरा
,
कोई रोक नहीं सकता। अब हम पर डिपेंड करता है कि हम हंसकर उसका सामना करें या रोकर अपना धीरज त्यागें। सबकी बेहतरी के लिए यही उचित होता है कि हम प्यारी बातें -यादें ही पीछे रह जाने दें जो उनको सदा हमारी खुशियों की स्मृति कराएं। जिसके हाथ में जितना है वो सब
जितना कर पा रहे हैं कर रहे हैं न -----".
ओह ! कितने लोग आते हैं
,
चले जाते हैं पर किसी अन्य के साथ यूँ जुड़ाव
,
वो भी सारे लोगों का कम देखने मिलता.
पहली बार तन्मय ने
,
उनके प्यारे से स्माइली ने सारी चुलबुलाहट त्यागकर अपनी बुआजी से कहा जिसने उनको निरुत्तर कर दिया।
उनका दिल धक् सा रह गया
,
कितने अधिकार से उसने कहा
, “
इतनी सी इल्तजा है मेरी
,
बुआजी आपसे
,
आपकी यही जिम्मेदारी
बढ़ा रहा हूँ
कि मेरे बाद इनको
,
मेरे पिता-माँ को संभालना
,
साथ ही मेरे सभी प्रियजन व् अन्य कोई भी यहां से कोई भी दुःखी होकर नहीं बस हंसकर मुझे भेजें।-------"
नहीं तो उस अनजाने जहान में मुझे जहां भी विराम पाना होगा
,
मैं बिलकुल भी दुःखी होकर नहीं रहना
चाहूंगा।”----
"
सबको बताना इस
'
जहाँ
'
से भी आगे एक और
'
जहाँ
'
है तब वहाँ से
'
आशीष
'
लेकर फिर आप सबके बीच आऊंगा न मैं।"
"
यहीं रहूँगा
,
सदा ही---- देख लेना।"
"हाँ आंसू न बहाना
,
न बहने देना
,
नहीं तो मुझे कष्ट होगा
,
देखो खुशी से तुम सबके बीच रहा हूँ ना। "
"
अब जाने के बाद भी खुश रहना
,
क्योंकि मैं यहीं बना रहूँगा."
उस दिन उसने इतना ही बड़ी मुश्किल में कई बार हांफ हांफ कर कहा
,
फिर अपनी वही अविस्मरणीय मुस्कराहट ओढ़कर
एक आँख से
'
विंग
'
किया.
दंग
रह गईं
बुआजी. पल भर में कितना बड़ा बन गया वो।
जीवन की "क्षण भंगुरता" कितनी आसानी से अपने तरीके से बतला रहा है
,
ये कोई बच्चा तो कतई नहीं है.
ओह ! उस पल लगा कि वो बालक नहीं
,
हमारे बीच कोई "संत पुरुष" या "देव" ही भेष बदलकर सबको एककर जीवन की यथार्थता समझाने हेतु आ गया है.
कैसे अपने जीवन में कामयाब होता जाता है. सब जानकर स्वयं हार न मानकर दूसरों को भी जीतना सिखला रहा है।
अपनी जिजीविषा से अपनी समस्त तकलीफों को झेलता
,
जूझता
,
मजबूत बनकर किसी भी अनहोनी
का निडरता से सामना करता बिना किसी से शिकायत किये विजय प्राप्त कर रहा है।
जीवन में ऐसे कठिन पल कम ही आते हैं जब हम किसी अन्य की परेशानियों को अपनी बना लेते हैं.
बस ------------------
आज शायद वे ही क्षण उनके समक्ष आ ग़ये
,
उन्होंने ऊपर आकर घोषणा भी की व उसके शब्दों को दुहराया भी।
उसके जाने के
कठिन पल आये तो रुआँसी होकर भी उसकी विदाई की घोषणा उन्हीं ने की.
जब सबसे पहले उन्ही ने अपने
'
तन्मय
'
के पसंद की धुन बजाईं व तो उनके साथ अनगिनत श्रृंखला बद्ध लोगों ने
वही अद्भुत लय की मधुर गूंज से
सबको हिलाकर रख दिया। आखिर कौन सी बात बता गया वो
?
कौन था वो
?
जो यहां से जाते जाते भी सबको एक नया पाठ पढ़ाकर
,
नया पथ बनाकर अपनी अनोखी सूझबूझ से प्रेरित कर गया। और कहां गया
,
अभी है कहाँ
?
अचानक नीचे व उस पूरे विशाल ऑडिटोरियम में हर जगह लगे एल ई डी सेट्स पर
,
दिखलाते उसके चुलबुलेपन के वे लाइव दृश्य।
ओफ़ ! सम्पूर्ण माहौल में अपूर्व- अबूझ सन्नाटा बिखर गया
,
पता ही नहीं चला।
अपनी असाध्य बीमारी से हार नहीं मानकर
,
जिंदादिली से लड़कर सबका प्यारा स्माइली वहां चला गया जहाँ से कोई लौटकर नहीं आ सकता.
सबके दिलों की धड़कन कुछ पलों के लिए थम ही सी गई मानो। सबके चेहरे भयभीत से
,
एक अनजाना
,
अनदेखा से डर।
अभी इस वक्त तो इन हालातों ने उनको भी गुमसुम ही कर दिया ।
किंकर्तव्यविमूढ़ होकर वे चलते जाती
,
उस घनी भीड़ में भी यूँ सन्नाटा कि सुई गिरे तो आवाज हो।
लगभग पिछले चार पांच महीनों से “वो” यहीं का बाशिंदा
,
सबका चहेता।
लगातार उदघोषणा में उस बच्चे का पूर्ण परिचय अब मिला।
देश की राजधानी दिल्ली । दिल्ली का एक सबसे बड़ा अस्पताल।
पूरी इक्कीस मंजिला
,
कई एकड़ों में फैला। सबसे पॉश इलाके में ।
बाहर बड़ा हरियाली से आच्छादित बगीचा। अन्य हॉस्पिटल्स के तुलना में बहुत ज्यादा मंहगा फिर भी पैर रखने की जगह नहीं एकदम साफ सुथरा ।
चारों तरफ लोग ही लोग
,
ज्यादा भीड़
बढ़ने पर केवल सिर ही सिर नजर आते। आपस में बातें तक करने की फुर्सत नहीं
,
सब ही व्यस्त लगते।
अस्पताल की दसवीं मंजिल
,
औन्कोलॉज़ी
डिपार्टमेंट।
नाम से ही ख़तरनाक
,
यहाँ पहुंचकर कोई भी किसी से नजर तक नहीं मिलाना चाहता.
मानो बीमारी ने उनके पास आकर उनको अनछुआ बना दिया है।
सबको पता है कि ये तो कभी भी
किसी पर भी आक्रमण कर सकती है.
सारे लोग बहुत व्यस्त
,
केवल अपनी ही उलझनों में खोये हुए।
कोई किसी को नहीं पहचानता
,
लगभग सब एक दूसरे के लिए अजनबी।
बावजूद इसके
सुदूर स्थानों ही नही वरन आस पास के सभी देशों के मरीजों की लगातार बढ़ती संख्या। क्योंकि सही डाइग्नोसिस व सही इलाज आगंतुकों का विश्वास जीतने में कामयाब।
सबसे ऊपर गेस्ट हाउस और बेसमेंट में अलग अलग कैटेगरी का भोजन स्थल।
बड़ी कैंटीन व हॉस्पिटल की खाद्य व्यवस्था अलग।
बस पॉकेट में वजन रहना चाहिए।
जिधर निकल जाओ
,
उधर ही नई तरह का टेक्नोलॉजी प्रबंधन।
बड़े ही सोच समझकर निर्मित किया गया होगा।
ऊपर से नीचे जाने के लिए कई जगहों पर ऑटोमैटिक लिफ्ट्स।
ढूंढे से भी कहीं कोई कमी नहीं सुव्यवस्थित वैसे भी भारत की विशेषता बीमारियों को ढूंढकर निदान करना है और विदेशों की सर्जरी।
"
वहीं ड्यूटी उनकी
,
नई डॉक्टर
,
नया हाउस जॉब व पोस्ट ग्रेजुएशन। एडवाइज़री कमेटी की मेंबर होने के साथ सपोर्टिंग मेंबर भी।"
उस दिन
,----------
“
हेलो! बुआजी !! “ पलटकर देखा था उन्होंने
,
पहचाना
,
”
अरे तन्मय तुम
,
कैसे हो बेटा।”
"
बस यहीं से आगे चलकर वे कब उस नन्हे की प्यारी
'
बुआ
'
बन बैठीं थीं कि पता नहीं चला
,
उनके सहयोगी
'
डॉ चन्द्रा
',
उसके चाचू। "
अब तो बस उसके कहे अनुसार स्मरण करके स्वयं के या किसी के भी आंसू नहीं बहने देना है।
उस अनजाने बच्चे के अनूठे रिश्ते ने मानो इनकी जिम्मेदारी बढ़ा दी।
अपना प्रोटोकॉल अपनी सारी डिग्निटी भूलकर वे
'
दोनों
'
अपनी गहन जिम्मेदारी निभाने को चल पड़े
,
एक अनजानी राह की ओर।
तन्मय के माता पिता को वहां से लौटने नहीं दिया गया
,
बल्कि उसके पापा को
वहीं उनके लायक जॉब समझाइश कर दी गई.
पता चला बाद में कि उस बड़े अस्पताल के ट्रस्टियों ने मिलकर एक अनोखी मुहीम स्टार्ट की है जिससे उन मरीजों का इलाज किया जायेगा
,
जो अपना ट्रीटमेंट करवाने में असमर्थ होते हैं. साथ ही ये भी आश्चर्यजनक जानकारी मिली।
नन्हे स्माइली के दवाइयों व सारे इलाज की जिम्मेदारी उन्हीं
के द्वारा उठाई गई।
एक मरीज की जिंदादिली व अनोखी इच्छाशक्ति ने इस कड़क मशीनरी को ही नहीं सिस्टम को भी केवल झकझोरा नहीं बल्कि भावनात्मक रूप से हिला कर रख दिया.
कैसा पथ सिखा दिया
,
कैसे निशान छोड़ दिए कि उस नन्हे के रगों की दृढ़ता ने तो इस हॉस्पिटल के स्वरुप को बदल दिया।
अनेकों व्याधिग्रस्त
,
भयंकर रोगों से लड़ते लोग भी इनको नहीं बदल सके न बदल सकते थे।
जहाँ सिर्फ पैसा ही प्रायोरिटी है सब तरफ।
वहीँ अब एक "तन्मय-मगन"
वार्ड निर्मित हो गया।
काश तन्मय ये देख पाता की जाते जाते भी उसने यहाँ का सिस्टम ही बदल दिया है.
किसी की जिंदगी
,
उसके जीवन की कीमत कितनी होती है जाने अनजाने सीख दे गया है वो.
सच ही कहा था उस बच्चे ने
,
वो यहीं रहेगा सदा सबके बीच।
कहीं नहीं जा रहा है।
उसकी जीवंत तस्वीर के साथ उसके नाम के वार्ड में
,
उसकी सबको मगन करके रख देने वाले वीडियो व उसकी कही
बातें सब मरीजों को मुदित व मगन कर देतीं.
नकारात्मक विचारों को दूर करके पाजिटिविटी से भर देतीं. उनमें उम्मीद व हिम्मत के साथ नवीन इच्छाशक्ति जाग्रत कर देतीं.
एक बच्चे को तो हम उसका जीवन नहीं लौटा सके पर उसने अनेकों उन बच्चों व बड़ों को ऐसा सम्बल प्रदान कर दिया है।
और केवल उसकी चाहत व धीरज ने अनेकों के लिए नए दरवाजों को खोलकर मगन कर दिया है।
स्मरण कर रहे हैं उसके बुआजी व चाचू उसके वे
अनमोल शब्द.
"
यू नो चाचू -बुआजी एक्चुअली तन्मय मीन्स मगन।"
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