कहानी लेखिका
-श्रीमती अलका मधुसूदन पटेल, 4723 /66 P ,विजय चौक ,जे पी नगर ,अधारताल ,जबलपुर ,म. प्र. 284002
प्रस्तुत कथा
मेरी स्वरचित है व् कहीं प्रकाशित नहीं हुई है.
"स्वयं
सिद्धा"------" नॉट गुड टच "
स्वतंत्रता दिवस पर पुलिस लाइन
में बड़ा प्रोग्राम ,शहर की जानी मानी राजनितिक हस्तियां व् एडमिनिस्ट्रेशन
मौजूद ,अधिकांश स्कूल्स
के सांस्कृतिक आयोजन व् पुलिस परेड लगातार चलते जाते। सही समय झंडा वंदन व्
राष्ट्र गान व् आयोजनों का प्रारम्भ ,आज कुछ ज्यादा रौनक व् लोगों की ज्यादा
उपस्थिति। पर रखने को जगह नहीं ,दूर तक कतार नजर आती। उपस्थित लोगों में से कुछ को हो पता
चला ,आज खास आयोजन
होने वाला है। क्या----पुरे सरकारी पंडाल में सजे धजे नन्हे बालक बालिकाओं व
लड़कियों की आश्चर्यजनक उपस्थिति। मानो शहर ही उमड़ पड़ा है ,उन बच्चों बच्चियों का जोश बता रहा है कि आज
कुछ खास है.
का सायरन बजने लगा ,लोग अलर्ट तो हुए
पर समझ नहीं आया कि आखिर कहाँ क्या प्रॉब्लम आ गई है. अरे नहीं ये तो ऊपर की
सरकारी मशीनरी की हलचल सी है. यहाँ देखने व पुरस्कृत करने आये हैं। पर किसे ,कैसा सस्पेंस ,कहीं जानकारी पर
अधिकांश लोगों का जोश देखते बनता है।
शहर की एस
पी महोदया ने खुद इस ट्रेनिग को संचालित किया है ,शहर ही नहीं आस
पास की लड़कियों की नियमित कोचिंग चल रही है। छोटी उम्र के बच्चों की अलग व् बड़े
बच्चों के लिए दूसरा समय निर्धारित। आश्चर्य इस बात का है क्योंकि इसके लिए अधिकांश अभिभावक पुरे जोश खरोश से
हिस्सा ले रहे हैं। स्वयं खड़े रहकर अपना समय दे रहे हैं। नन्हे बालक बालिकाएं पूरे
मनोयोग से सीख रहे हैं. साथ ही
लगातार पिछले तीन
दिनों से भयंकर बारिश हो रही है , बहुत दिनों के बाद
सूरज के दर्शन हुए है रोज न्यूज़ दी जा रही
है कि शहर के निचले इलाकों में पानी भर गया है। लोगों को बहुत कठिनाइयां आ रहीं
है। खजूरी कॉलोनी में पानी भरने से वहां के लोगों को पास के स्कूल में शेल्टर दिया
गया गया है। डॉ अंशु को याद आया कि उनकी शीला बाई भी तो वही रहती है ,कहीं उसको भी कोई प्रॉब्लम न आ गई हो ,वैसे भी तीन -चार
दिनों से वो आई नहीं है। आज कुछ मौसम खुला है ,चलकर उसको देख लिया जाये ,इस बहाने चेकिंग
भी हो जाएगी व ठीक होगी तो कल से काम पर आने को कह दूंगी ,परेशानी हो रही है। छोटे बच्चों के साथ घर व
ऑफिस का काम बड़ा मुश्किल होता है। वे चल पड़ीं उसको देखने। वैसे इसके पहले भी एक दो
बार उसके घर तक उसको ड्राप करने आईं हैं. मेन रोड पर तो अनेकों बार कार से छोड़ा है
पर आज तो उसका घर ढूंढकर अंदर जाना ही होगा।
उसकी कॉलोनी इतनी
बड़ी भी नहीं उसका घर न मिल पाए ,इसी उधेड़बुन में कब उसी रोड पर आ पहुंची ,पता ही न चला।
अचानक गाड़ी रोकी उतरकर शीला के घर जाने के लिए एक दो लोग से पता पूछकर जा
पहुंची ।ये क्या उसकी कॉलोनी तो एकदम साफ
सुथरी व चारों तरफ चूना डाला हुआ दिखा। एकदम सामने वो भी अपनी बेटी के साथ दिख
गई। स्वच्छ सा घर ,उसकी बेटी दौड़ कर
घर में घुस गई.
अपनी मैडम को
अपने घर आया देख वो तो ख़ुशी से झूम उठी।
"अरे तुम तो एकदम ठीक ठाक हो और मैं चिंता में रही कि जाने क्या संकट
आ पड़ा है तेरे को."
" नहीं मैडम वो मेरी लड़की का रोका करने को सोचा है , वो लड़के वाले आ रहे हैं ,एक दो दिन में ,तब तक मेरी बेटी
को ही तैयार करती रही , पर वो तो मेरी बात ही नहीं मान रही उसकी दादी-दादा ,पापा सब समझाकर हार चुके हैं ।
वो व उसके दोनों
भाई जिद में अड़े हैं ,अभी हम पढ़ेंगे-पढ़ाएंगे। शादी की तो बात ही नहीं उठती
।"
------"अब हम गरीब ,लड़की जात को कब तक घर रख सकते हैं ,आगे पढाई की सोच ही नहीं-----सकते। कैसे हाथ
में लें इनको."--"साथ ही बेटी
भी जिद में अडी है कि मेरे टीचर्स ने मुझे दूसरे फील्ड सुझाये हैं , मेरे पास कई
ऑप्शन्स हैं ।” “अब स्कूलों में भी इन विद्यार्थियों को उलटे पाठ सिखाने लगे हैं ,बड़ी मुश्किल है
।"
"
ओह ! कठिन समस्या आन
पड़ी है सुलझाना कठिन हो रहा है ,तुमको " , मैडम बोल उठीं।
"अच्छा बुलाओ तो तुम्हारे बच्चों को ,मैं भी ट्राई करके देखूं। "
अपनी समस्या ,हड़बड़ी भूल कर वे
उसकी उलझन दूर करने को तत्तपर हो उठीं.
"आप बैठो तो सही मेमसाब" ,वो काफी जोश में आकर बोली। विश्वास हो चला कि
ये जरूर उन सबको समझा लेंगी।
अब बैठकर कुछ
मुस्कुराकर बोलीं ,"आश्चर्य है अभी तक तेरे बच्चों को देखा तक नहीं हमने।
"
---- "वो कुछ मौका ही तो नहीं पड़ा न मेमसाब ",
बहुत देर बाद
दोनों बेटे बाहर आये ,दोनों की आँखों व चेहरों से ही समझ आ गया कि परेशानी में
हैं शायद।
'एक छोटा ,एक बड़ा भैया है बिटिया का। दोनों की और शै मिली
है उसको ,तभी सब जिद में
हैं”।
पुनः कटुता भरकर
वो बोल उठी। "कौन उसको नौकरी करनी
करानी है और अब सब ओर का माहौल कितना बिगड़ चूका है ,जमाना बिल्कुल ठीक नहीं ,किसी का भरोसा
नही”।------
अब अपने घर वो
जाये तो हमारी जिम्मेदारी कम हो
"--------
"बेटे अपनी बहना को बुलाओ ,मेरे पास लाओ। "
"बोलो डॉ आंटी आईं हैं। " उन्होंने सांत्वना दी।
“वो किसी से बात नहीं करना चाहती साब न कुछ समझाने का असर पड़ेगा" ,माँ ने पहले ही
कह दिया है नौकरी तो करनी नहीं है। काम करना भी पड़ा तो उसके लिए पढाई की नहीं हुनर
की जरुरत होती है. कहतीं हैं अब मुझे ही देखो मन मर्जी का काम ,मन भर पैसा। अपने
में कौशल होगा तो जाने कहाँ कमा कर खा सकते हैं । पर हमें हमारी लाडो को माँ जैसा
काम नहीं करने देना ,कितनी होशियार है ,हमारी पिंकी आपको नहीं मालूम मैडम। "
कहकर दोनों भैया
रुआंसे हो गए। आक्रोशित भी लगे।
ओह ! सिचुएशन तो
बिगड़ चुकी है ,कैसे भी इनके परिवार को समझाना होगा। लड़की को समझाकर विवाह हेतु तैयार करना
ही होगा. नहीं तो उनको भी अपने काम वाली
के नहीं आने से बहुत दिक्कत हो जाएगी । कुछ तो टैक्टिस भिड़ानी होगी। अब इसके
बच्चों को कैसे विश्वास में लिया जाये।
"ओ के पहले यहाँ मेरे पास तो लाओ ,मैं देखती हूँ ,कैसे क्या किया जाये।" डॉ अंशु ने कहा ,
"मैडमजी मेरी पढाई माँ पिताजी ने पहिले ही काम के चक्कर में
बंद करवा दी है ,रोजनदारी से कितना कमा पाउँगा।"
माँ ने कह दिया है तेरे पैसे की हमें जरुरत नहीं
,तुम हमारे काम
में रोड़ा नहीं डालो , तुम पर कोई बोझ नहीं होगा।
हाँ मुझे तो छोटे
दोनों को उनके ठौर लगाने की बड़ी जिम्मेदारी से मुक्त होना है। छोटू एकाध साल और पढ़
ले अपनी मेट्रिक निकाल ले, उसकी पढाई बंद ।
लड़की की शादी करूँ गंगा नहाऊं ,वहां जाकर जो करना है करती रहे।
" माँ मुझसे पैसा नहीं लेने का धौंस जमा रहीं है , अब मैने ठान लिया
है ,उन दोनों की पढाई
व कॅरिअर की रेस्पोंसिबिलिटी है मेरी। मैं और मेहनत करूँगा। उन दोनों को उनके सपने
पूरे करने के अवसर देने चाहता हूं।”
" ठीक है , देखो बेटे हम पहिले ही कह चुके हैं ,बात बिगड़ने नहीं
देंगे। एक बार बुलाओ तो सही ,तुम्हारी लाड़ो का पक्ष भी सुनूं ,वैसे मुझे कोई फैसला नहीं लेना है।"
समझाते हुए कहा उन्होंने। मन ही मन विचार किया कुछ भी टैक्टिस
लगाकर इन बच्चों को तैयार करना ही होगा। नहीं तो शीला के बिना उनको कितनी
प्रॉब्लम हैं ।
जाने क्या सोचकर
वो अंदर गया ,
तब तक वे शीला के
घर का निरीक्षण करने लगीं। छोटे छोटे,बेहद साफ सुथरे कमरे व चारों तरफ की दीवार पर
बने बड़े सूंदर 'भित्तिचित्र '- जो आजकल तो कहीं
देखने ही नहीं मिलते ,किसी म्यूजियम में अवश्य दृष्टिगत होते हैं. यही नहीं जमीन
पर भी सूंदर पेंटिंग सी चित्रकारी ,वो अपनी मेड के घर में बनी इस कारीगरी से कोई तारतम्य नहीं
बिठाल पा रहीं व सोचने लगीं कि ये सब ----
? तभी ----
बेहद नाजुक सूंदर
नन्ही मुन्नी सी बच्ची को लेकर वो आया ,"अरे ! तुम वे तो उसे देखकर आश्चर्य से भर उठीं।
तुम शीला की बेटी हो। " उसने सकुचाकर उनको देखा व बड़ी ही गरिमा से आगे आकर डॉ
अंशु के चरण छूने चाहे
"नहीं नहीं बेटी अपने यहाँ बेटियां पैर नहीं छुआ
करतीं।"
अब तो वे भी दंग
हो गईं। ये लड़की उनकी शीला की बेटी है ओह ! अनजाने में वे क्या कर बैठती ।
पीछे पीछे शीला
भी मुंह फुलाकर आ खड़ी हुई।
"तुम्हारी बिटिया की क्या उम्र है ?"-------
"अरे मैडम अभी पंद्रह पूरा
कर चुकी है ,सोलह में चल रही है ,बात लगते चलते अठारह तक हो ही जाएगी ,बालिग होने के
पहले नहीं करुँगी। उसका ब्याह ,पर ठीक ठाक घर परिवार तो देखना होगा न।”
“चलिए आप दोनों बात करें ,इनके दिमाग में कुछ ---सही” । कटुता से उस बच्ची की माँ
ने कहा।
मैं आती हूँ मैडम
,कुछ चाय नाश्ता
का इंतजाम करके। शायद उन दोनों को बातें करने का समय देकर अभी तक तो अंशु केवल
अपने स्वार्थ के लिए सोचती रही पर अब धर्म संकट ही आन पड़ा हो जैसे।ये लड़की तो उनकी
बिटिया से कुछ ही बड़ी लगती है वो भी निपुणता में किसी से कम नहीं। और यहां तो
ग़रीबी का भी उतना बड़ा मुद्दा नहीं लग रहा। तब----
बेटी तुम्हारा
नाम , “मैं सोनी हूँ मेम
,मुश्किल ये है
अभी कुछ दिनों पहिले तक ही मां कहतीं थीं ,तुझे खूब पढ़ाऊंगी-बढाऊंगी। अब एकदम शादी के
लिए पीछे पड़ गईं
हैं।” वो शांत बच्ची एकदम फफककर रो पड़ी।
डॉ अंशु का मन
द्रवित हो गया ,ऐसा परिवर्तन अचानक क्यों हो गया बेटा।कोई तो कारण है ।देखो मुझे बताओगी तो
सम्भवतः कुछ हेल्प कर सकूं। “आंटीजी बात ही ऐसी है कि कैसे बताऊं ,घर में भी शायद
दादी को ही पता है। भाई लोगों को कुछ अंदाज है ।” ” मुझे बता सकती हो ,इतना भरोसा तो
करना ही होगा ,जो भी हो ,जैसी भी बात हो बताओ।”
नजर झुकाकर
झिझकते हुए बोली ,” पिताजी - माँ तो काम पर चली जाती हैं ,भाई अपने कार्य व
पढ़ाई में ।मेरा स्कूल थोड़ी देर में लगता है व लौटते पांच हो जाता है ,तब ----” “हां बोलो बताओ बिटिया”
---“कुछ लड़के रोज परेशान करते हैं ,पीछे भी कभी आ जाते हैं । उनमें एक तो रिश्ते में भी कुछ
लगता है ,अक्सर हमारे घर आ
धमकता है ---और ----और----गलत हरकतें करने की कोशिश करता है। तब माँ तो घर में
होतीं नहीं न किसको बताऊँ। मेरे व सहेलियों के विरोध करने पर ,हमें व परिवार को
देख लेने की धमकी। माँ को थोड़ा थोड़ा बताया है मां तो बहुत चिंता में हो गई है।
उनको तो अब किसी पर भी भरोसा ही नहीं। ”
" पर अब क्या इन सबसे डरकर हमारे पास केवल शादी का उपाय रह
गया।"
डॉ अंशु के मन
में भी चिंतन मनन होने लगा ,प्रगट में कुछ न कह सकी। आज ये बच्ची ,कल दूसरी ,कभी उनकी बिटिया भी इस तरह की मानसिकता वाले
लोगों के कारण संकट में आ सकतीं हैं।पर इसका उपाय ये तो कतई नहीं जो ये शीला सोचने
लगी है।अभी तक अपने स्वार्थ सिद्ध में प्रयासरत वे सब बेटियों की सुरक्षा को मन
में चिंतित हो चलीं।
ऊपर से तटस्थ
रहते हुए पूछ बैठीं ,”ये तो बताओ कि तुम्हारे घर में ये बड़ी बड़ी चित्रकारी किसने
की व कहाँ से आई व फर्श की पेन्टिंग्स। “
“”आंटीजी ये तो मुझे मेरे पापाजी ने सीखा दी है ,उनके पास इस तरह की बहुत आर्ट बुक्स हैं ,कभी भाई लोग भी
सहयोग कर देते हैं । “ बड़ी उत्सुकता से खुश होकर बोली । इतनी देर बाद उसके चेहरे
की मायूसी कम होकर खुशी झलकी।
“अच्छा तभी वो तुम्हारे स्कूल के ड्राइंग कम्पटीशन में तुमने बहुत सुंदर
कलाकृति बनाई थी। “
वे दोनों कुछ और
बात करतीं की शीला आ गई।
कहाँ से बात शुरू की जाये ताकि शीला गलत न समझकर गहन
समस्या का हल सोचे व् उनको भी गलत न सोचकर निदान सोचे. .
क्योंकि वास्तव
में ये बड़ी कठिनाई है। घातक सामाजिक बुराई है जो अपने घरों से बढ़कर दूर तक फ़ैल रही
है. ये सभी पेरेंट्स के लिए चैलेंज है.
जो हमारी बेटियां
थोड़ी बड़ी हो गईं हैं ,वे तो कुछ सावधान कर सकते है उनको ,
पर जो बहुत छोटी हैं
उन्हें व् हमारे नन्हे बालकों को भी एलर्ट करने की जरूरत है. इसके लिए हमें ही
उपाय सोचकर मानसिकता ही परिवर्तित करनी है। समाज के हर वर्ग के परिवार के छोटे बालक बालिकाएं दोनों को ही पारिवारिक
संरक्षण के आलावा सामाजिक सुरक्षा की आवश्यकता है. जहाँ वे नन्हे मुन्ने भी अपने
साथ सही गलत व्यवहार करने वाले को समझकर सुरक्षित बने रहें। साथ ही उनकी अपनी
योग्यता को निखार के निश्चिन्ता से आगे बढ़ सकें ,भयभीत होकर इस बच्ची की तरह अपने जीवन से भटकाव
न होने पाए।
उनको स्मरण हो
आया ,अभी तीन महीने
पहिले जब वे अपने टीम के साथ देवताल के
दिव्यांग -आँख से न देख सकने वाली बालिकाओं के स्कूल में शिक्षण सामग्री बाँटने
गईं तो उस ऑफिस में उपस्थित सारे अधिकारी ,कर्मचारी पुरुष
वर्ग मिला ,एक दो महिलाओं की मात्र उपस्थिति। और
वे बच्चिया काफी डरी सहमी सी क्यों लगीं। कहीं उनके साथ कोई अत्याचार या
दुर्व्यवहार तो नहीं ------ओह ! सोचकर दिल दहल गया.
उनके माँ पिता ने अपना बोझ हल्का करने उनको यहाँ
रख दिया ,साथ ही सरकारी अनुदान मिलने से पारिवारिक सहूलियत मिल
गई। अब वो बच्ची तो धीरे से उनको बता गई ,ये बेटियां किसे व् कैसे कौन से अपना मन खोल
पाएंगी। और तभी मन में लक्ष्य बना लिया कि
अपनी इस मुहीम में अपनी कुछ खास सहयोगियों को लेकर निदान करना होगा।
जुट पड़ीं हैं डॉ अंशु.
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